आज़ादी की 72वीं वर्षगांठ थी। सुबह से ही चारों ओर चहल पहल थी। स्कूल के बच्चे स्कूल जा रहे थे मगर वो पीठ पर स्कूल का बैग लादकर नहीं अपने हाथों में एक झंडा लिए थे। ये झंडा उनका देशप्रेम दर्शाता था। सारा शहर दुल्हन सा सजा था जिसका नज़ारा रात में ही देखते बनता था। ऑफिस जाने वाले निकल रहे थे। सड़कों पर रोज़ से ज्यादा रौनक थी। घरों में बैठे बुजुर्ग टीवी पर मोदी जी का भाषण सुनने में व्यस्त थे तो कोई अपने बच्चे के स्कूल उसका डांस देखने जा रहा था। दूसरी ओर सोशल मीडिया भी देशभक्ति से भर चुका था। हर दिन से अलग आज का दिन था। मन में ढेरों खुशियाँ थीं मगर सिर्फ एक दिन की। दूसरा दिन होते ही सब पहले जैसा हो जाता। एक दिन के लिए सबकी देशभक्ति जाग गई थी। सवाल तो बस मन में ये उठ रहा था ये देशभक्ति महज एक दिन की क्यूँ? उसके बाद, उसके बाद ये देश किसी और का हो जाता है क्या? या फिर तुम ही इसके वासी नहीं रहते? तब किसी को परवाह नहीं रहती देश मे क्या हो रहा है? कोई सीख याद नहीं आती, कचरा न फैलायें, महिलाओं पर अत्याचार न करें, सबको अपनी माँ बहन समझें। ये सब महज एक दिन के लिए क्यूँ याद रहता है उसके बाद हम भूल
1902 का साल यूं तो आम ही था मगर वो खास तब बन गया था। जब लाल बहादुर शास्त्री जैसी शख्सियत का जन्म हुआ था। बनारस के मुगलसराय की धरती भी जश्न मना रही थी उस दिन। जब उसके यहां लाल बहादुर जैसा लाल आया था। छोटा कद सामान्य व्यक्तित्व होने की वजह से शास्त्री जी लोग को कमज़ोर समझने लगते थे। मगर शास्त्री जी ने अपनी काबिलियत से सबके मुंह बंद करवा दिए। सामान्य जीवन जीने वाले शास्त्री जी आज एक मिसाल बन चुके हैं हम सबके लिए। आज आम आदमी नाम की एक पार्टी बन चुकी है। मगर आम आदमी का जीवन जीना शायद आज भी नहीं आया किसी नेता को। आम आदमी का जीवन संघर्षों से भरा होता है। इस समाज में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो अपने सिंघासन को दरकिनार करते हुए आम आदमी की जिंदगी जीना चाहेगा। जो मिलने वाली हर सुविधा को न स्वीकार करके आम आदमी बनेगा। ऐसे ही महान थे हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी। सादगी ही जिनका जीवन परिचय रहा और ईमानदारी उनका व्यक्तित्व। 2 अक्टूबर गांधी जयंती के नाम से सबको याद रहता है। मगर इसी दिन एक और महान आत्मा ने धरती पर जन्म लिया था। वो थे लाल बहादुर शास्त्री जी। यह ब